सौरभ पाण्डेय
प्रतिदिन करीब 150 मॉस्क बना रहीं स्वयं सहायता समूह की महिलाएं
बीमारी से लड़ने के लिए उपयोगी मॉस्क बना कर दे रही हैं योगदान
महराजगंज:- कोरोना संक्रमण से बचने के लिए दो गज की दूरी और साफ-सफाई के साथ मॉस्क भी जरूरी का स्लोगन पूरे देश में गूंज रहा है। जनपद में यही मॉस्क महिलाओं के स्वयं सहायता समूह के लिए।आत्मनिर्भता का साधन बनने लगा है। महिलाएं उपयोगी मॉस्क बना कर जहां एक तरफ कोरोना से जंग में योगदान दे रही हैं, वहीं दूसरी ओर आत्मनिर्भता का संदेश भी प्रस्तुत कर रही हैं। यह प्रेरणास्प्रद कहानी है मिठौरा ब्लॉक के मोहनापुर ग्राम पंचायत की स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की, जो घर बैठे मॉस्क बना कर आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं। इनके द्वारा बनाया गया मॉस्क बाजार के मॉस्क की तुलना में काफी सस्ता भी है। इन ग्रामीण महिलाओं को प्रति मॉस्क पांच से दस रूपये की कमाई हो जा रही है। मॉस्क बेचने के लिए न तो इन महिलाओं को किसी बाजार में जाना पड़ता है, और न ही किसी ही प्रकार की समस्या सामने आ रही है। इन्हें घर पर ही बाजार मिल जा रहा है। उक्त गाँव की करीब एक दर्जन महिलाओं ने मिल कर एक स्वयं सहायता समूह का गठन किया था। पहले तो इस समूह की महिलाएं छोटी-छोटी बचत करके समूह का संचालन करती थी। मगर कोरोना काल में मॉस्क की मांग और उपयोगिता को देखते मॉस्क बनाने का फैसला लिया। इस समूह के पास चार सिलाई मशीन है। समूह की अध्यक्ष रीता देवी सहित सिलाई कार्य करने में दक्ष दस महिलाओं ने बीते पहली जून से मॉस्क बनाने का कार्य शुरू किया।
रीता देवी बताती हैं कि समूह की महिलाएं सूती कपड़े का मॉस्क बनाती है। प्रति मॉस्क करीब पांच रूपये का खर्च आता है, जो फुटकर में 15 रूपये तथा थोक में दस रूपये के भाव से बिक जाता है। थोक में मॉस्क लेने के लिए आसपास के छोटे-छोटे दुकानदार आते हैं, जबकि फुटकर में ही आसपास के ग्रामीण खरीद लेते हैं। समूह से जुड़ी महिलाओं में आरती, अंबुजा, पुनीता,रूना, शकुन्तला व कौशिल्या आदि के नाम हैं। इन महिलाओं का कहना है कि कोरोना काल में जहां लोगों को रोजगार तलाशने में दिक्कत हो रही है,वहीं हम महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिल जा रहा है,जिससे वह आत्मनिर्भर बनने की राह पर हैं। उक्त समूह की महिलाओं को तकनीकी जानकारी इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी से जुड़े सृष्टि सेवा संस्थान के परियोजना समन्वयक बैजनाथ द्वारा दी जा रही है।
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*अब तक बिक चुका है करीब 6000 मॉस्क*
उक्त समूह के पास मात्र चार सिलाई मशीन ही है। इन मशीनों से डेढ़ माह में करीब 6000 मॉस्क बनाकर बेंचा जा चुका है। अब मॉस्क की बढ़ती मांग व आवश्यक को देखते हुए इस कार्य कार्य में और तेजी लाने का प्रयास किया जा रहा है।
*बच्चों के रेडीमेड कपड़े बनाने की तैयारी*
समूह की महिलाओं का कहना है कि जब तक मॉस्क की मांग और बाजार है तब तक मॉस्क बनेगा। उसके बाद छोटे बच्चों का रेडीमेड कपड़ा तैयार किया जाएगा, ताकि आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके।