महराजगंज। ईद-उल-अजहा यानी बकरीद त्योहार एक अगस्त को है। कुर्बानी के इस त्योहार के मद्देनजर प्रतिवर्ष बकरों का बाजार सज जाता था l शहर के कई इलाकों में बकरामंडी भी लगी रहती थी लेकिन लॉक डाउन का ग्रहण इनके अपर भी लगा हुआ है । जैसे जैसे बकरीद नजदीक आ रही है बकरों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं।
वर्तमान में 10 किलो के बकरे का दाम 12000 से 15000 हजार तक पहुंच गया है lकुर्बानी के लिए पहले से घर में बकरा पालने वाले अब उनकी सेवा में जुट गए हैं। बिशुनपुर खुर्द के एजाज अहमद खान, गंगराई के मोहम्मद अफसर अली, बभनौली के सलीम खान, सिसवा मुंशी के सैफ नेता सियरही भार के शाहिद खान जरलहिया लक्ष्मी पुर के अनीश खान, तरकुलवा के वसीम खान, भिटौली के असलम, जादू पिपरा के शैफ सहित हजारों लोग अपने घर में पाले हुए बकरों की खिदमत में दिनों रात गुजार रहे हैं। बाजार में बकरों की कीमत इस साल बढ़ी हुई है।वर्तमान में आम तौर पर पाच हजार से लेकर सत्तर हजार रुपये तक के बकरे उपलब्ध हैं। लेकिन लॉक डाउन मे बकरा बाजार पर महंगाई का असर देखा जा रहा है। खरीददार अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार बकरों की ख़रीदारी में लगे हैं।
कुर्बानी की खास बातें
तरकुलवां भटगांवा के हाफिज खैरूल्लाह का कहना है कि कुर्बानी दिए जाने वाले बकरे, का कम से कम एक दाँत का होना चाहिए। हर तरह से स्वस्थ बकरे का ही कुर्बानी दिया जा सकता है l कुर्बानी अल्लाह की रज़ा के लिए की जाती है l इसके अलावा मजहबी एतबार से कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्से में बाटना चाहिए। एक खुद के लिए, दूसरा रिश्तेदारों व पड़ोसियों के लिए और तीसरा हिस्सा गरीब के लिए होता है । जिस जानवर की कुर्बानी दी जा रही है, उसके चमड़े से मिलने वाले पैसे पर गरीब का हक होता है। यह उसे ही सौंप देना चाहिए।