शहर से लेकर गांव में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था का दावा करने वाले स्वास्थ्य विभाग की चौखट पर ही उपचार के अभाव में प्रसूता ने दम तोड़ दिया। हद तो यह है कि दर्द से कराहती गर्भवती को सीएचसी से महज 25 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल रेफर करने में 18 घँटे का समय गुजर गया। जब तक उसे जिला अस्पताल लाया गया तबियत बिगड़ चुकी थी। पैदा हुए शिशु की भी मौत हो चुकी थी। जच्चा बच्चा की मौत के बाद चिकित्सा अधिकारी भले ही दावा कर रहे है कि पेट में पल रहे शिशु की तीन दिन पहले ही मौत हो चुकी थी, लेकिन इतने घँटे के बाद भी पेट में पल रहा बच्चा स्वस्थ है या नहीं इसकी जांच तक नहीं होना चिकित्सकीय जांच के सिस्टम पर सवाल खड़ा कर दिया। जिला अस्पताल के सीएमएस के मुताबिक बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था। शव सड़ चुका था।
बिना जांच के ही सीएचसी में चल रहा था उपचार
बिहार का रहने वाला टुनटुन अपनी पत्नी रुबीना के साथ परतावल में रह कर चाय की दुकान पर काम करता हैं। परिजनों के मुताबिक रुबीना की तबियत खराब होने के बाद एक दिन पहले रविवार दोपहर डेढ़ बजे के करीब में उन्हें परतावल सीएचसी में भर्ती कराया। सोमवार की सुबह छह बजे के करीब रुबीना को जिला अस्पताल रेफर किया गया। जिला अस्पताल के चिकित्सकों के मुताबिक मरीज के साथ न तो अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट था और ना ही ब्लड जांच और नही अन्य कोई रिपोर्ट थी। जिला महिला अस्पताल की स्टाफ नर्स ने सामान्य प्रसव कराया। जिसमें बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था।
परतावल सीएचसी के चिकित्सा अधीक्षक डॉ राजेश द्विवेदी ने बताया कि पत्रावली देख कर ही बताया जा सकता है कि रुबीना को कब जिला अस्पताल रेफर किया था। जांच के सवाल पर चिकित्सा अधीक्षक ने बताया कि परतावल सीएचसी में अल्ट्रासाउंड मशीन नही है।