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आफत बनकर टूटा नेपाल से आया पानी, फसल डूबी, बेबस हुए किसान

महराजगंज: हर साल की भांति इस वर्ष भी पहाड़ी नाला महाव के टूटने का सिलसिला नहीं थम रहा है। हल्की बारिश में ही नौतनवा क्षेत्र में डोगहरा व हरखपुरा गांव के पास रेत से बने जर्जर बांध के टूटने से किसानों के चेहरे की रौनक गायब हो गई है। तबाही की मार झेल रहे जहरी, विशुनपुरा, घोडहवा, महरी आदि गांव के किसान अपने को बेसहारा महसूस कर रहे हैं। हालत यह है कि ऊपजाऊ खेतों में रोपी गई धान की फसल कई बार बर्बाद होने के बाद भी जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से उन्हें सिर्फ और सिर्फ कोरा आश्वासन ही मिला। यही कारण है कि उम्मीदों व आश्वासनों के बीच किसान कई पीढि़यों से महाव नाले का कहर झेलते चले आ रहे हैं। नेपाल की पहाड़ों से निकला महाव भारतीय सीमा में प्रवेश करने के बाद काफी खतरनाक रूप धारण कर लेता है। भारतीय क्षेत्र में कुल 23 किमी लंबाई में बहने वाले महाव के किनारे लगभग चार दशक पूर्व तक कोई बांध नहीं था। पहाड़ों से आया पानी खेतो में फैलते हुए जंगल के रास्ते बघेला नाले में गिर जाता था, लेकिन 1977 में तत्कालीन क्षेत्रीय विधायक व हथकरघा मंत्री अब्दुल रऊफ लारी ने किसानों की मांग पर महाव के दोनों तरफ नाले की रेत को निकालकर मजदूरों द्वारा बांध का निर्माण कराना शुरू किया, तो किसानों ने अपने खेत के सामने बांध निर्माण के लिए जमीन छोड़ना बेहतर नहीं समझा। लिहाजा फैलकर बहने वाली महाव का रकबा बांध निर्माण के कारण पूरी तरह सिमट गया। जो बाढ़ की पानी का दबाव रोक नहीं पाता है और हर साल टूटकर भारी तबाही मचाता है। इतना ही नहीं सर्पीले आकार में बहने वाले नाले के 69 खतरनाक मोड़ अब किसानों के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं।