रंगों का पर्व होली इस बार 19 मार्च को मनाया जाएगा। होलिका दहन 17 मार्च को आधी रात के बाद 12:57 बजे से 18 मार्च की सुबह 6:02 बजे तक किया जाएगा। होलिका दहन और होली की तिथियों को लेकर विभिन्न पंचांगों में एकरूपता दिखाई दे रही है। ज्योतिषी व कर्मकांड के विद्वान भी इस पर एकमत हैं।
आर्यावर्त अंक ज्योतिष विज्ञान के संस्थापक
ज्योतिर्विद आचार्य लोकनाथ तिवारी ने बताया कि 17 मार्च को सूर्योदय 6 :03 बजे होगा। चतुर्दशी तिथि का मान दिन में 1:02 बजे तक पश्चात सम्पूर्ण दिन और रात्रि पर्यन्त पूर्णिमा है। यह पूर्णिमा दूसरे दिन 18 मार्च को दिन में 12:52 बजे तक है। 17 मार्च को भद्रा भी दिन में 1:02 बजे से रात को 12:57 बजे तक है। पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा का निवास होता ही है। होलिका दहन के विषय में लिखा गया है कि होली, भद्रा रहित पूर्णिमा के रात में ही किया जाए। दिन में चतुर्दशी या प्रतिपदा में होलिका दहन का निषेध है। इसलिए इस वर्ष होलिका दहन 17 मार्च की रात्रि में 12 बजकर 57 मिनट के बाद और 18 मार्च को सूर्योदय 6:02 बजे से पूर्व ही मान्य रहेगा।
होलिका दहन के लिए पांच घंटे का समय
ज्योतिर्विद लोकनाथ तिवारी ने बताया कि ऋषिकेष पंचांग में होलिका दहन का समय 17 मार्च की अर्धरात्रि 12:57 से 18 मार्च की सुबह 6:02 बजे तक है। इस बार होलिका दहन के लिए कुल 5 घंटे 5 मिनट का समय है। होलिका दहन के अगले दिन होली मनाई जाती है। होलिका दहन का समय 18 मार्च की सुबह तक है। होली चैत्र मास कृष्ण पक्ष सूर्योदय व्यापिनी प्रतिपदा में मनाई जाती है। जो 19 मार्च को है। इसलिए होली 19 मार्च को मनाई जाएगी। अंग्रेजी कैलेंडर में 17 मार्च को होलिका दहन बताया गया है।
होलिका के दहन में पूर्व विद्धा प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा ली जाती है। भविष्यपुराण का वाक्य है, यदि दिन के पूर्वार्द्ध में चतुर्दशी हो और रात्रि में पूर्णिमा हो तो भद्रा का परित्याग कर होलिका दहन किया जाए। होलिका के पूजन और दहन में चार कारक निषिद्ध हैं, प्रतिपदा तिथि, चतुर्दशी, भद्रा और दिन। इसमें होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। यदि पहले दिन प्रदोष के समय भद्रा हो, जैसा कि इस वर्ष है, और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा समाप्त होती हो, तो भद्रा की समाप्ति होने की प्रतिक्षा करके सूर्योदय होने से पहले होलिका दहन करना चाहिए।