महाराजगंज। जिले में किसानों के नाम पर फर्जी बैंक खाता खोलकर आढ़तियों का हजारों कुंतल धान सरकारी क्रय केन्द्रों पर बेचने का मामला सामने आया है। कोतवाली क्षेत्र के शिकारपुर में एक मकान पर पुलिस व साइबर सेल ने छापेमारी कर भारी संख्या में चेकबुक-पासबुक, एक्टिवेटेड सिमकार्ड के अलावा 19 सरकारी क्रय केन्द्रों की मुहर बरामद की है, साथ ही भालेन्द चतुर्वेदी पुत्र स्व0 धर्मराज उम्र 58 वर्ष निवासी ग्राम करमह, टोला घुरठई थाना कोतवाली जनपद महराजगंज, भागवत प्रसाद पुत्र विभूति उम्र 22 वर्ष निवासी ग्राम बल्लोखास थाना घुघली जनपद महराजगंज, व्यासमुनि पुत्र प्रेमलाल उम्र 45 वर्ष निवासी पड़री खुर्द थाना घुघली जनपद महराजगंज, शत्रुधन पाठक पुत्र सुदामा पाठक उम्र 21 वर्ष निवासी बरवा विद्यापति थाना कोतवाली जनपद महराजगंज को इस मामले में गिरफ्तार किया है।
फर्जीवाड़े का मास्टरमाइंड है एक कारोबारी कोतवाली क्षेत्र के शिकारपुर में मां दुर्गा ट्रेडर्स एवं विल्डिंग मैटेरियल इस फर्जीवाड़े को संचालित करने वाले कारोबारी शम्भू कुमार गुप्ता नाम सामने आ रहा है. छापेमारी के बाद वह फरार है. उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम दबिश दे रही है. इस मामले में कोतवाली पुलिस उक्त चार लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है.
फर्जी एकाउंट खोलकर घपला
पासबुक पर जिन किसानों का नाम-पता है उन्हें मालूम ही नहीं कि उनका फर्जी खाता खोलकर, उसके जरिए लेनदेन किया जा रहा है. मामले में महाराजगंज पुलिस के अलावा खाद्य विपणन विभाग ने जांच शुरू कर दी है. जांच टीम यह पता लगा रही है कि किसानों से औने-पौने दाम पर खरीदे गए कितने कुंतल धान सरकारी क्रय केन्द्रों को एमएसपी पर बेचा गया है. शुरूआती जांच में जो बातें सामने आ रही हैं उसके मुताबिक, जिले का ही नहीं बल्कि बिहार से भी धान लाकर यूपी के सरकारी केन्द्रों पर बेचा गया है।
रडार पर बैंक व सरकारी धान क्रय केन्द्र
जांच के मुताबिक, बिचौलिये किसानों से 1200-1400 रुपये प्रति कुंतल की दर से खरीदे गए धान को सरकारी क्रय केन्द्रों पर बेचने के लिए फर्जीवाड़े का एक बड़ा रैकेट चला रहे थे. इस रैकेट में कई विंग बनाए गए थे. एक विंग के सदस्यों का काम था कि वह गांव में जाकर सरकारी योजनाओं के नाम पर किसानों का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज हासिल करे. दूसरा विंग इन दस्तावेजों के सहारे सिमकार्ड लेकर एक्टिवेट कराते थे. फिर बैंक में फर्जी दस्तावेज के सहारे एकाउंट खोले जाते थे.
बैंकों की भूमिका संदिग्ध
फिर उसकी ओटीपी एक्टिवेटेड सिमकार्ड के मोबाइल नम्बर पर मंगाई जाती थी. तीसरा विंग बैंक खाता व फर्जी मोबाइल के जरिए धान बेचने के लिए पंजीकरण कराता था. चौथा विंग बिचौलियों से धान खरीद उसे एमएसपी पर सरकारी क्रय केन्द्रों पर बेचता था. फिर फर्जी चेकबुक के सहारे खाते से धान बिक्री के रूप में मिली भुगतान की राशि को निकाल लिया जाता था. इस रैकेट में बैंकों की भूमिका इसलिए संदिग्ध मानी जा रही है, क्योंकि बरामद अधिकांश पासबुक पर आगे पीछे कोड भाषा में हस्ताक्षर हुआ है.
सूत्रों के मुताबिक, बैंक में भुगतान के लिए जब यह पासबुक भेजे जाते थे तो बैंक कर्मी कोड भाषा देख बिना जांच-पड़ताल ही खाते में आई धनराशि का भुगतान कर दे रहे थे. क्रय केन्द्रों की संलिप्तता की आशंका पर इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि 19 सरकारी क्रय केन्द्रों की मुहर भी बरामद हुई है. इस मामले में डिप्टी आरएमओ अखिलेश सिंह का कहना है कि जांच चल रही है. जिस क्रय केन्द्र की इसमें संलिप्तता उजागर होगी उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. वहीं, एसपी प्रदीप गुप्ता का कहना है कि पूरे मामले की गहनता से छानबीन कराई जा रही है. इसमें जिनकी भी संलिप्तता मिलेगी उसके खिलाफ केस दर्ज कार्रवाई की जाएगी.