रिश्तो के मजबूत डोर व प्रेम का प्रतीक है रक्षाबंधन
महराजगंज। येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः,तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल!देवगुरु बहस्पति ने देवराज को रक्षासूत्र बाधने के दौरान उक्त श्लोक का वाचन कर इन्द्र को अपने संकल्प से विचलित न होने का मंत्रोचारण किया।यही रक्षासूत्र कलाई पर बांधने की परम्परा वैदिक काल से लेकर वर्तमान मे सनातन धर्म मे भाई व बहन के पवित्र रिश्ते व अटूट प्रेम का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।रक्षाबंधन एक परम्परा नही बल्कि एक ऐसा बंधन बन गया है जो एक धागे मे संस्कारो को भी लपेटे हुए है।वर्तमान मे आर्थिक आय के अंधे दौड़ मे जहा रिश्ते कमजोर होते जा रहे है वही पैसो पर भाई बहन के अटूट रिश्ता व रक्षा का एक धागा भारी पड़ रहा है।देश के भिन्न भिन्न प्रान्तो मे यह पर्व भिन्न भिन्न नामो से प्रचलित है लेकिन सबका उद्देश्य सामाजिक पारिवारिक रिश्तो को मजबूत करना व लोक कल्याण ही है।हर वर्ष श्रावण मास के पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व पर इस साल अमृत सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग लोक कल्याण व जन समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।
उल्लेखनीय है कि श्रावण माह के पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।रक्षाबधन के दिन बहने भाई की कलाई पर राखी का धागा बांध उनकी सलामती की कामना करती है और भाई बहनो को उपहार भेंट कर उनकी रक्षा का संकल्प लेते है।भाई बहन के अटूट रिश्ते को दर्शाती रक्षाबंधन के पर्व पर बहने सरहद से लेकर विदेश तक भाईयो को रक्षाबंधन भेजती है।आर्थिक आय की दोड़ मे दरकते रिश्तो के बीच रक्षाबंधन का पर्व एक प्राचीन परम्परा ही नही बल्कि संस्कारो को भी बेहतर बना रहा है।रक्षाबंधन पर्व वैदिक काल से ही चला आ रहा है और इसके पीछे तमाम मान्यताए प्रचलित है।रक्षाबंधन का भविष्य पुराण मे वर्णन मिलता है जिसके अनुसार देव व दैत्यो के युद्ध मे देवराज इन्द्र घबरा कर देवगुरु बृहस्पति के पास पहुचे और रक्षा कि गुहार लगाई।देवगुरु बृहस्पति द्वारा श्रावण माह की पूर्णिमा को रेशम का धागा इन्द्र की कलाई पर बांध मंत्र का उच्चारण किया गया,युद्ध मे इन्द्र विजयी हुई तभी से यह प्रथा प्रचलित हुई।श्रीमदभागवत मे वामनावतार कथा के अनुसार राजा बलि ने 109साल यज्ञ कर स्वर्ग पर अधाकार करने प्रयत्न किया तो इन्द्र के आग्रह पर भखवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा के रुप मे आकाश पाताव व धरती लेकर बलि को रसातल मे भेज दिया।बलि ने रसातल मे जाने के दौरान अपनी भक्ति के बल पर भगवान विष्णु से दिन रात अपने सामने रहने का वचन ले लिया तब नारद के सलाह पर लक्ष्मी जी ने बलि के पास जाकर रक्षाबंधन बांध भाई बनाया और भगवान बिष्णु साथ को लेकर आई।रक्षाबंधन का सम्बंध महाभारत से भी है कहा जाता है कि युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण की अंगूली मे चोट लगने पर द्रोपदी ने साड़ी का टुकडा़ बांधा और श्रीकृष्ण ने द्रोपदी किसी भी संकट मे द्रोपदी की सहायता का वचन दिया था।रक्षाबंधन को लेकर तमाम तरह की कथाए व मान्यताए प्रचलित है लेकिन सबका उद्देश्य रिश्तो की डोर का मजबूत करना और प्रेम सौहार्द कायम रखना है।इस बार श्रावण माह की पूर्णिमा को अमृत सिद्धि का संयोग बन रहा है जो कल्याणकारी होगा।इस साल रक्षाबंधन श्रावण माह के सोमवार को है और इस दिन प्रीति अमृत सिंद्धि श्रावण नक्षत्र आयुष्मान योग व सर्वार्थ योग सिद्धि योग मिल रहा है जो काफी शुभ व फलदायक है।फिलहाल रक्षाबंधन पर्व को लेकर गांव शहर तक धूम मच गयी है।कोरोना संक्रमण मे रक्षाबंधन के पर्व पर सोशल डिस्टेंस व एतिहात के तौर पर पांबदियो के बीच रक्षाबंधन पर्व पर राखी व मिठाई की खरीदारी मे भीड़भाड़ से लोग परहेज करते नजर आ रहे है,लेकिन रक्षाबंधन के पर्व पर भाई बहनो के लिए अनुपम उपहार भेंट कर इस पर्व की खुशियो को यादगार बनाने की कोशिश मे लगे है।
सुबह8.30से रक्षाबधंन का मुहुर्तःआचार्य लोकनाथ
आर्या ब्रत के संस्थापक आचार्य लोकनाथ तिवारी ने बताया कि श्रावण पूर्णिमा पर अंतिम सोमवार को रक्षाबंधन आयुष्मान योग का संयोग बन रहा है।इस बार न ग्रहण की छाया है न भद्रा की दीर्घकालिक दिक्कत।भद्रा दो अगस्त दिन रविवार की रात्रि साढ़े आठ बजे से शुरू होकर तीन अगस्त की सुबह साढ़े आठ बजे तक है,इसलिए सोमवार की सुबह साढ़े आठ बजे से दिन भर रक्षाबंधन मनाया जाएगा।रक्षा बंधन के दिन व्रती को चाहिए कि उस दिन प्रातः स्नान आदि करके वेदोक्त विधि से रक्षाबंधन,पित्र दर्पण और ऋषि पूजन करें। रेशम आदि की रक्षा बनावें। उसमें सरसों,सुवर्ण,केसर,चंदन,अक्षत और दूर्वा रखकर रंगीन सूत के डोरे में बांधे अपने मकान के शुद्ध स्थान पर कलश की स्थापना करके उस पर उसका यथा विधि पूजन करें फिर उसे बहन भाई को दाहिने हाथ में रक्षाबंधन बांधे।