पंकज रौनियार
महराजगंज। चार दिन चलने वाले छठ पर्व के दौरान दो बार सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि के दिन डूबते सूर्य को दिया जाता है जबकि दूसरा अर्घ्य सप्तमी तिथि को उदय होने वाले भगवान भास्कर को दिया जाता है.
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमि तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ आस्था और संस्कार के पर्व छठ का समापन होता है. उगते सूरज को अर्घ्य देने के लिए कल (रविवार) तड़के से ही छठ घाटों पर लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी.
चार दिन चलने वाले छठ पर्व के दौरान दो बार सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि के दिन डूबते सूर्य को दिया जाता है, जबकि दूसरा अर्घ्य सप्तमी तिथि को उदय होने वाले भगवान भास्कर को दिया जाता है. नदी, तालाब और नहरों पर बने छठ घाटों के पानी में उतरकर महिलाओं ने भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया.
चार दिन वाले इस पर्व के तीसरे यानी रविवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया. इस दौरान लोग भक्ति भाव में डूबे नजर आए और तालाबों के किनारे आस्था का सैलाब देखने को मिला. यह एक ऐसा पर्व है जिसमें उगते सूरज के साथ-साथ डूबते सूरज की भी पूजा होती है.
जिस तरह डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घाटों पर भक्तों और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी इसी तरह सुबह होती ही भगवान भास्कर की पूजा अर्चना की गई. घाटों के किनारे आस्था का रंग और छठ की छटा दिखाई दी.
कैसे होता है छठ पर्व का समापन?
सप्तमी तिथि के दिन छठ घाट पर पानी में खड़े होकर उगते सूर्य को जल दिया जाता और अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना की जाती है. इस बार सोमवार को उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ छठ पर्व का समापन है. सूर्योदय का समय 6:30 बजे है और उगते सूर्य की पहली किरण के साथ ही अर्घ्य दिया जा सकता है.